हर सुबह
पौ फटते ही
एक लाठी के सहारे
सफेद साड़ी से लिपटी
दुर्बल काया लिये
वह आ जाती
प्रौढ आश्रम के दरवाजे पर
पथराई आँखों से
इंतजार करती वो
इंतजार करती वो
दूर तक फैले पथ पे
किसी के आने की,
अपनों से बेगाना होकर
अपनों से ही आश रखती थी
खामोश रहकर भी
अनगिनत सवाल करती थी
सोचती कभी तो आयेगा
वो मेरा लाल
जो मेरा दुलारा है
जो मेरा प्यारा है
जो मेरा प्यारा है
राह देखते देखते
कई सांझ ढल गयी थी
रातें भी ना जाने कितनी
उस सुबह की याद में
निकल गयी थी
ऊंगली पकड़कर
आज वो उस अपने के
साथ चलाना चाहती थी
जिसे कभी वो
चलना सिखाती थी
जिंदगी आखिरी पड़ाव पे थी
उस पल में वो कुछ
आपनों का साथ चाहती थी
एक सुबह
नई किरणें जब बिखर रही थी
वो आज एक कोनें मे पड़ी
खामोश थी
उसकी लाठी
जो सहारा देती थी उसे
बेसहारा सी पड़ी थी
जिस राह को
वो रोज तकती थी
आज उस पर मोतियों की तरह
चारों ओर बिखरी सी
ममता की ओस पड़ी थी..................
क्या बात है। हिलाकर रख दिया।
जवाब देंहटाएंमाँ तेरी अजब कहानी। मार्मिक अभिव्यक्ति। आभार।
जवाब देंहटाएंशीर्षक से ही भावनाओं की गहराई का एह्सास होता है। बहुत सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत गहन!
जवाब देंहटाएं4.5/10
जवाब देंहटाएंसंवेदना जगाती मार्मिक पोस्ट
उम्र की जिस दहलीज पर आज हमारे माता-पिता हैं.....
कल को हम भी उसी उम्र पर आयेंगे.
ओह! दिल पर गहरा असर करने वाली रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ...भावमय प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी...सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंbhavuk kar dene wali behatreen prastuti !
जवाब देंहटाएंMAA KI MAMTA KE LIYE TO BHAGVAN KO BHI KRISHNA KA AVTAR LENA PADA THA
जवाब देंहटाएंDEVENDRA.SONALKI
जवाब देंहटाएंWah kya bhav hain.....pdah kar dil inhe mehsoos kar raha hai. bahut acchi kavita hai
जवाब देंहटाएंदिल की गहराईयो को छूने वाली, गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
मार्मिक अभिव्यक्ति। आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बन गयी ये रचना तो...
जवाब देंहटाएंवाह... भावुक...मार्मिक....
आप सभी लोगों ने इस रचना को पसंद किया , इसके लिए मैं आप सभी का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ ..........
जवाब देंहटाएं