रविवार, 14 नवंबर 2010

बाल दिवस विशेष.........अंजाना पथ नन्हे कदमों का

हर सुबह
पथरीले राहों पर
नंगे पाँव
एक नन्हा कदम
जो कोमल नहीं है
वक्त ने जिसे पत्थर कर दिया 
निकलता है
ढूँढने अपना सुरज
एक रोशनी को पाने 
जो उसकी भुख
शांत कर सके
वह खोजता है दिन भर
अपने हिस्से की रोटी
कभी आग में तपकर
कभी पत्थरों को उठाकर
कभी हाथों में 
बंडल लिये अखबारों का
वह घुमता है उन चौराहों पे
जहाँ जिंदगी 
घिरी रहती है, मौत के पहियों से
वह घुमता है उन गलियों में
जहाँ रहते हैं
समाज के ठेकेदार
उनकी नजरें क्रुरता भरी
घुरकर भगाती हैं उसे
वह हर चेहरे की तरफ 
देखता है कुछ आश लेकर
पर दुत्कार सहता हुआ
लफ्जों को बंद रखकर
आगे चलता जाता है
उस रास्ते पर
जहाँ उसकी जिंदगी 
दिखती है बोझों तले 
ना डॉक्टर, ना इंजीनियर
ना वकील के ख्वाब
उसका तो ख्वाब
रह जाता है
बस भुख मिटाने के लिये
ये दुनिया चूर है
अपनी दुनिया में
वह नहीं देख पाती
एक दूसरी दुनिया
जो अंजान है
ना जाने कितनी खुशियों से
स्कूलों की चारदिवारी से
जब निकलते हैं
नव वसन में
कांधे पे बैग
हाथों मे बॉटल लिये
मुस्कुराते फूल
उसका मन
लालच भरी नजरों से
झुक जाता है
हाथों मे लिये 
फावड़े को देखकर
शाम ढलते ही लौटता है
उस आशियाने की तरफ
जो खुद उसका नहीं
कुछ युं ही
दौड़ रहा है वो
अंजाने पथ पर...........

आशीष मिश्रा 

चित्र गूगल सर्च से साभार

6 टिप्‍पणियां:

  1. aashish ji ,aapki is post ne man ko bhav -vibhor
    kar kuchh mna ko uddhelit sa kar diya hai .sach aajke din isse se achhi rachna aur kya ho sakti hai .jin bachcho ko suraj ugane se lekar suraj ke dhalne tak apni pet ki aag ko shant karne liye
    jin-jin paristhitiyo se gujarna padta hai,unke liye to shayad vo din hi khas hota hoga jab pet bhar khana aur tan dhankane ke liye koi bhi kaisa bhi kapdda mil jaye vo itne me hi apne ko santusht kar lete hain.
    bahut hi yatharth prastuti ki hi aapne .dil ko chho gai aapki post.
    poonam

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  2. देश में इस तरह का जीवन अनेक बच्चे जी रहे हैं। कविता के माधम से उनकी व्यथा को स्वर देने के लिए साधुवाद।

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  3. bohot khoob....ekdum sateek likha hai...bohot acchi rachna

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